About j krishnamurti biography in hindi
जिद्दू कृष्णमूर्ति
जिड्डु कृष्णमूर्ति (१२ मई १८९५ - १७ फरवरे, १९८६) दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विषयों के लेखक एवं प्रवचनकार थे। वे मानसिक क्रान्ति (psychological revolution), मस्तिष्क की प्रकृति, ध्यान, मानवी सम्बन्ध, समाज में सकारात्मक परिवर्तन कैसे लायें आदि विषयों के विशेषज्ञ थे। वे सदा इस बात पर जोर देते थे कि प्रत्येक मानव को मानसिक क्रान्ति की जरूरत है और उनका मत था कि इस तरह की क्रान्ति किन्हीं वाह्य कारक से सम्भव नहीं है चाहे वह धार्मिक, राजनैतिक या सामाजिक कुछ भी हो । जिद्दू कृष्णमूर्ति बुद्ध से प्रभावित थे ।
जीवनी
[संपादित करें]जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्म एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्म 12 मई 1895 में आन्ध्र प्रदेश के चिन्तूर जिले के मदन पल्ली नामक स्थान पर हुआ था। उनकी माता का नाम संजीवम्मा था। उनके पिता का नाम जिद्दू नारायनीय था और वे एक अवकाश प्राप्त सर्वेन्ट के साथ-साथ पुराने थियोसोफिस्ट थे। दस वर्ष की आयु में जब इनकी माता श्री का देहावसान हो गया तो इनके पिता अपने पुत्रों समेत श्रीमती एनी बेसेन्ट के आमन्त्रण पर 1908 में मद्रास के उडयार नामक स्थान पर स्थित थियोसोफिकल सोसायटी के परिसर में जाकर रहने लगे। बालक कृष्णमूर्ति की गहरी आध्यात्मिकता को देखकर उस समय के प्रमुख थियोसोफिस्ट,सी डब्लू लीड बीटर और श्रीमती एनी बेसेन्ट ने यह स्वीकार किया कि बालक का भविष्य एक महान् आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में विश्व का मार्गदर्शन कर सकता है।
जनवरी 1911 में उडचार में जे.
कृष्णामूति की अध्यक्षता में "ऑर्डर ऑफ़ द स्टार इन द ईस्ट" की स्थापना हुई। 1920 में वे पेरिस गये और उन्होंने फ्रेन्च भाषा में कुशलता प्राप्त की 3 अगस्त 1929 को श्रीमती एनी बेसेन्ट और 3000 से अधिक स्टार सदस्यों की उपस्थिति में उन्होंने 18 वषों पूर्व संगठन "ऑर्डर ऑफ़ द स्टार इन द ईस्ट" को भंग कर दिया था। द्वितीय विश्वयुद्व के अनन्तर वे ओहाई (केलिफोर्निया) में रहे।
कृष्णमूर्ति के दाशर्निक विचार
[संपादित करें]कृष्णमूर्ति पर प्रकृति का बहुत गहरा प्रभाव था। वे चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक सौन्दर्य को जाने और उसे नष्ट न करे। वे कहते थे कि शिक्षा केवल पुस्तकों से सीखना और तथ्यों को कंठस्थ करना मात्र नहीं है। उनके अनुसार शिक्षा का अर्थ है कि हम इस योग्य बने कि पक्षियों के कलरव को सुन सकें, आकाश को देख सकें, वृक्षों तथा पहाडियों के अनुपम सौंदर्य का अवलोकन कर सकें।
कृष्णमूर्ति के दार्शर्निक विचार निम्न हैं-
1.
दर्शन-
उनके अनुसार दर्शन वह है जो हमें साथ के लिए प्रेम, जीवन के लिए प्रेम तथा प्रज्ञा के लिए प्रेम जागृत करता है। उनका मानना है कि शिक्षण संस्थानों से हमें दर्शन के नाम पर जो कुछ पढाया या सिखाया जाता है वह मात्र विचारों एवं सिद्धांतो की व्याख्यायें होती हैं जिसमें सत्य के वास्तविक स्वरूप को देखने की क्षमता प्रायः समाप्त हो जाती है।
2.
सत्य-
कृष्णमूर्ति के अनुसार सत्य एक पथहीन भूमि है। सत्य तक पहुचने के लिए कोई राजमार्ग नहीं है। सत्य तो स्वयं के भीतर छुपा है।
3.
Biography divide up rajiv gandhi proudyogiki mahavidyalaya bhopalदुख और दुख भोग-
कष्ट का संबंध शरीर से है जबकि दुख मानसिक पीडा है। शारिरिक पीडा का अन्त तो औषधि के सेवन से किया जा सकता है, परन्तु मानसिक पीडा को दूर करने के लिए व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक स्थितियों को पूरी तरह से जानना होता है। भूत और भविष्य की स्मृति दुख का कारण होती है।
4. भय-
कृष्णमूर्ति भय को मानव मन की गम्भीर बीमारी मानते हैं जो मानव जीवन को गहराई तक प्रभावित करती है। भय का कारण जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली प्रतियोगितायों और जीवन में आने वाली अनिश्चिताएॅ होती हैं। उनके अनुसार आत्मज्ञान होने पर ही भय से मुक्ति संभव है।
5.
मृत्यु-
वे कहते हैं मृत्यु से इंसान भयभीत हैं कि हमें यह पता ही नहीं है कि जीने का अर्थ क्या है। मृत्यु दो प्रकार की होती है, शरीर की मृत्यु और मन की मृत्यु। शारिरिक मृत्यु एक अनिवार्य घटना है। मन की मृत्यु ही वास्तविक मृत्यु है।
कृष्णमूर्ति के शैक्षिक विचार
[संपादित करें]1. वर्तमान शिक्षा व्यक्ति को महत्वकांक्षी बनाती है, जिससे उनके अन्दर प्रतियोगिता की भावना पैदा होती है। यह प्रतियोगिता समाज के कमजोर वर्गों का शोषण करती है और अनेक बुराईयों को जन्म देती है।
2.
वर्तमान शिक्षा विभिन्न उपाधियों को प्राप्त करने लिए ही प्रेरित करती है जिसका मुख्य उदे्दश्य मात्र व्यवसाय प्राप्त करना, उॅंची नौकरियाॅं प्राप्त करना और सत्ता हथियाने के प्रयास करना है।
3. वर्तमान शिक्षा भय पर आधारित है। जीवन के हर पक्ष पर भय की छाया रहती है और भयभीत व्यक्ति में मेधा का अभाव होता हैै।
कृष्णमूर्ति के नाम पर बने विद्यालय-
[संपादित करें]कृष्णमूर्ति के अनुयायियों ने अनेक विचारों को मूर्त रूप देने के लिए भारत में ही नहीं इंग्लैंड और कैलिफोर्निया में भी विद्यालयों की स्थापना की जिसमें राजघाट का बेसेंट स्कूल राजघाट वाराणसी, बसन्त काॅलेज फाॅर वूमेन राजघाट वाराणसी, श्रृषी वैली स्कूल चिन्तर, भागीरथी, वैली स्कूल रानारी, उत्तर काशी प्रमुख हैं।
रचनायें
[संपादित करें]कृष्णामूर्ति एक एैसे दाशर्निक हैं, जिन्होंने आत्मज्ञान पर विशेष बल दिया। हिन्दी भाषा में उनके अनुवादित मुख्य रचनायें हैं-
(क) शिक्षा और संवाद
(ख) शिक्षा और जीवन का तात्पर्य
(ग) शिक्षा केन्द्रों के नाम पत्र
(घ) सीखने की कला
(ड.) ध्यान
(च) विज्ञान एवं सृजनशीलता
(छ) स्कूलों के नाम पत्र
(ज) परम्परा जिसने अपनी आत्मा खो दी
(झ) प्रेम
(ट) ध्यान में मन
सन्दर्भ
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]फाउन्डेशन
[संपादित करें]विद्यालय
[संपादित करें]- Brockwood Park Nursery school, Hampshire, UK
- Oak Grove School, Calif., USA
- Rajghat Besant School, Uttar Pradesh, India
- Rishi Valley School, Andhra Pradesh, India
- The School, Chennai, India
- The Vale School, Bangalore, India